Thursday, June 17, 2010

इक विनय ईश्वर से......

मेरी हर आवाज मानवता की आवाज बने,
मेरे दिल धड़कन नवयुग का आगाज करे,
चाह नहीं मेरे मन की आवाज मेरी आदेश बने ,
पर इतनी हसरत है दिल की, पदचिह्न मेरे पहचान बने |

वह राह मुझे मंजूर नहीं, जिसपर शूल न हों बिखरे,
उस विजय की चाह नहीं मन में, जो मानवता से दूर करे,
वह शक्ति नहीं बनना चाहूं ,जो निर्बल पर अन्याय करे,
वह फूल बना दो हे भगवन, जो वीरों का सम्मान करे|

सूरज सा चमकना चाहता हूँ ,दीपक न बना देना मुझको,
खुशियाँ बिखराना चाहता हूँ ,काँटा न बना देना मुझको,
पत्थर न बनाना मुझको तुम, पूजा जाऊं ठोकर खाऊं,
दिल की हसरत है हिना बनकर,मैं जीवन में रंग लाऊँ|

हर नयी किरण के साथ मैं, मानवता का अभिषेक करूं,
आश निराश हुए मन में, नवजीवन का संचार करूं,
अश्क चुरा लूँ आँखों से, और विप्पत्ति में ढाल बनू,
यूँ दर्द भरी इस दुनियां से ,खुशियों का व्यापार करूं|

एसे कुछ ख्वाब संजोये आंखें हैं,पर भटक रहा है मन मेरा,
है जूनून भी सांसों में, माया ने है मुझको घेरा,
प्रभो..!, नहीं विश्वाश मुझे,सफल बनोगे इक दिन तुम,
जब ख्वाब दिखाए हैं तुमने, तो राह बताओगे भी तुम|

गौरव पन्त
१७ जून,२०१०

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