Thursday, April 21, 2011

मेरी प्यारी माँ मुझसे कभी दूर ना जाना.....!

वो मेरा बचपन,वो मीठी सी यादें,
कहाँ खो गयी हैं हैं, वो मस्ती की बातें;
कभी धूप में, कभी मिट्टी से सनकर,
खेल-खेल की लडाई,और रोकर बिलखकर;
तेरे आँचल से लिपटना,सिसकना सिमटना,
इक प्यारी सी लडाई के,तुझको किस्से बताना;
हर गलती पर मेरी, तेरा डांटकर पुचकारना,
याद आता है माँ, तेरा आँचल सुहाना!!

हर रोज नयी-नयी,शरारतें करना,
परेशान तुझको करना और दूर भाग जाना;
कभी गलती छुपाकर,पापा की मार से बचाना,
तो कभी गलती पर तेरा,यूँ आंखें दिखाना;
मेरा गुस्सा तुझसे होना, रोना बिलखना,
"कट्टी" भी तुझसे करना,और तुझी से लिपटना,
होली में गुजिया,मिठाई दिवाली में चुराना,
याद आता है माँ,वो पिटाई का जमाना!!

मैं दूर हूँ तुझसे,अब यादें रुलाती हैं,
वो तेरी प्यारी-प्यारी मीठी बातें बुलाती हैं,
ऐ माँ!,मैं दौड़कर तेरे पास आना चाहता हूँ,
पर क्यों जिंदगानी,मुझे दूर ही ले जाती है;
जब लौटकर आऊं,तेरे आँचल की छावं में,
फिर से पुचकारेगी मुझे,लिए प्रेम-अश्रु आँख में,
यूँ गोद में खेलेगा फिर,वही बचपन सुहाना,
मेरी प्यारी माँ!, मुझसे कभी दूर ना जाना...!!



गौरव पन्त
२२ अप्रैल, २०११

1 comment:

  1. शब्दों और विचारों की अच्छी प्रस्तुति........

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