Sunday, July 22, 2012

विवाह क्या है...!!!

एक रोज एक मित्र की शादी तय हुयी तो मेरे यह पूछने पर कि किससे हो रही है -- जवाब मिला इंजीनियर से हो रही है। कुछ समय बाद दूसरे दोस्त की शादी में उनके पिताजी से भी यही प्रश्न पूछा तो जवाब मिला वो (कोई गावं का नाम ) के हैं , लड़का डाँक्टर है,एकलौता लड़का है ,उसके पिता रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं,दिल्ली में दो फ्लैट हैं ..., उनसे हो रही है। तबसे मन में एक ही सवाल उठ रहा है -- आखिर विवाह क्या है ?...व्यापार ..! आखिर कब डिग्रियों की नहीं ,इंसानों की शादी होगी।
 
 विवाह क्या है, दो आत्माओं का मिलन ,
या भौतिक जरूरतें पूरा करने का जरिया है ।
ये त्याग है , प्रेम है , या कोई पूजा ,
या लोभ धन लालच का आधुनिक नाम है यह ;
आखिर क्या है यह विवाह ...क्या..?

इक व्यवसाय है ,फरेब है ,धोखा है ,
प्यारे ये इन्सान है ,जो बस पैसे का भूखा है ,
इक ओर अपना बीता कल छुपाते हैं हम ,
क्यों जीवनसाथी से ह़ी, कुछ छिपाते हैं हम ;
कीचड से सना हो ,चाहे जीवन हमारा ,
पर कमल के फूल सा दर्शाते हैं हम,
वो रिश्ते ही क्या , जो सच से घबरायें ,
वो जीवनसाथी ही क्या, जिससे हकीकत छिपायें;
कर्म चाहे हों हमारे, कोयले से काले ,
ढूध से धुला जीवनसाथी,चाहते हैं हम।
अगर ये रिश्ते खुदा ही बनाता है तो ,
फिर क्यों व्यसाय किया करते हैं हम;
एक सा पेशा हो या नोटों की बारिश,
कुबेर देवता गर करें थोड़ी सी शिफारिश;
पूरब से पश्चिम का मेल करने को,
घोड़ी या डोली , चढ़ जाते हैं हम ।

कभी कुंडली में अपना भविष्य टटोलकर ,
नियति बदलने की असफल कोशिश करते हैं ,
तो कहीं दुल्हन-डिग्री का व्यापार करते हैं,
कभी सोचा है, क्या कभी हम प्यार करते हैं ;
यहाँ पैसे से बिकता है प्यार भी प्यारे ,
बोली लगती हैं , दिलदार की प्यारे।
अजी ..! टीचर को क्या चाहिए, बस टीचर,
क्या फर्क पढता है , हो चाहे वो फटीचर।
डाँक्टर ,इंजीनियर की डिग्री , सारी सम्पत्ति का ,
लेखा -जोखा होता है ,यहाँ हर  डिग्री का ;
विवाह क्या है ,व्यवसाय हाथी का,
जिन्दा लाख तो मरा सवा लाख का ;
कुछ ऐसा हो चुका है , प्यारा समाज मेरा,
वर वधु चाहे जैसे ,पर हो संपत्ति का बसेरा ;
सात फेरों की ,क्या होती हैं सात कसमें,
चलो छोड़ो यारो , ये नहीं हैं अपने बस में;

क्योंकि पहली सभ्यता हैं हम विवाह के व्यापार की,
ना बदलना इनको, दुहाई मिलेगी तुम्हें थात की;
हैं जगतगुरु हम ,दहेज़-हत्या और उत्पीड़न में ,
लड़कियों के व्यापार में,जी हाँ , प्यार के व्यापार में भी ..!
और इस  प्यार के व्यापार का इक सामाजिक  नाम है ...
..............विवाह...! ..................
 


गौरव पंत
21-जुलाई -2012

No comments:

Post a Comment