ये एक सफ़र है कॉलेज से शादी तक का .......
ऐसा क्या है उन आँखों में,
जो मैं खुद को ही भूल गया;
कॉलेज जाने निकला था;
और उनके घर से ही लौट गया ।।
उडती जुल्फों को जब भी वो,
नजरों से हटाने जाती है;
नयनो के बाण चलाकर यूँ;
घायल मुझको कर जाती है ।।
ना देखूं इक दिन भी उनको,
किस्मत से शिकायत करता हूँ ;
मिल जायें तो क़यामत होती है,
और रब से इबादत करता हूँ ।।
हुश्न दिया उनको तूने,
अब प्यार जरा सिखला दे तू;
उनके बिन दिल का क्या आलम है ;
इक उन्हें बतला दे तू ।।
दिन रात करवटें लेता हूँ ,
यूँ उनके सपनो में जगता हूँ;
तकिये को बाहों में भरकर;
चुपचाप यूँ ही सो जाता हूँ ।।
अक्सर दोस्तों की महफ़िल में,
तरकीब बताई जाती है ;
प्यार जताने की हमको ;
हर युक्ति सिखाई जाती है ।।
यूँ पहला अध्याय प्यार का पढकर ,
इजहार प्यार का करते हैं ;
और उनके ना कहने के बहाने ;
जब हम कुछ ऐसे सुनते हैं ।।
कभी सोचा ही नहीं इस बारे में ,
बस अच्छा दोस्त समझते हैं ;
कमबख्त दिल का दर्द लिए;
हम मदिरालय चल पढ़ते हैं ।।
फिर कभी कभी आंखें नम सी,
हो जाती हैं हाल सुनाने में;
और कभी कभी दिल-ए-दर्द की;
बातें होती मयखाने में ।।
कमबख्त ये दिल तो पागल है ,
जो बस उनपर ही मरता है;
वो लाख मना कर दें मुझको ;
ये प्यार उन्हीं से करता है ।।
यूँ दिल में प्यार का दर्द लिए,
इक दिन कॉलेज से चल पढ़ते हैं;
नयी नौकरी नयी छोकरी ;
ढूँढने की सपथ लेते हैं ।।
हाय जवानी बीत गयी ,
अब दाल कहीं नहीं गलती है ;
तब मम्मी - पापा की तरफ;
आशा की नजरें उठती हैं ।।
कैसी लड़की चाहिए तुझको ,
जब मम्मी ये पुछा करती है;
तब अपने भी अरमानों की,
एक लम्बी लिस्ट निकलती है ।।
घने रेशमी बालों वाली ,
खूबसूरत और प्यारी हो ;
नीली नीली आँखों वाली ;
लगती राजकुमारी हो ।।
लम्बी ना मोटी छोटी,
जीरो फिगर वाली हो ;
चंद्रमुखी से भी खूबसूरत;
माँ..! मेरी घरवाली हो ।।
कैसे कैसे आरमान लिए ,
खाव्बों में खोये रहते हैं ;
वो जान -ए -हया कैसी होगी;
दिन रात सोचते रहते हैं ।।
इकदिन छोटी मोटी सी,
एक बीवी भी मिल जाती है ;
यूँ सारे अरमानों की;
अर्थी भी उठ जाती है ।।
अब तो बस बीवी बच्चों की,
फरमाईश पूरी करता हूँ ;
क्यों शादी कर ली मैंने;
अक्सर ये सोचा करता हूँ ।।
सुबह सुबह हनी कहकर,
पुचकार के मुझे उठाती है;
सड़ी हुयी चाय पिलाकर ;
नाश्ता तैयार करवाती है ।।
अब कोल्हू के बैल की तरह ,
दिन भर काम करवाती है ;
गलती हो या ना हो मेरी;
डायन.. मुझपर ही गुर्राती है ।।
यूँ पंचनामा हुआ प्यार का ,
अब ना हसरत कोई बांकी है ;
ना तेरी ना मेरी प्यारे ;
हम सबकी यही कहानी है ।।
गौरव पन्त
27 जनवरी 2013
ऐसा क्या है उन आँखों में,
जो मैं खुद को ही भूल गया;
कॉलेज जाने निकला था;
और उनके घर से ही लौट गया ।।
उडती जुल्फों को जब भी वो,
नजरों से हटाने जाती है;
नयनो के बाण चलाकर यूँ;
घायल मुझको कर जाती है ।।
ना देखूं इक दिन भी उनको,
किस्मत से शिकायत करता हूँ ;
मिल जायें तो क़यामत होती है,
और रब से इबादत करता हूँ ।।
हुश्न दिया उनको तूने,
अब प्यार जरा सिखला दे तू;
उनके बिन दिल का क्या आलम है ;
इक उन्हें बतला दे तू ।।
दिन रात करवटें लेता हूँ ,
यूँ उनके सपनो में जगता हूँ;
तकिये को बाहों में भरकर;
चुपचाप यूँ ही सो जाता हूँ ।।
अक्सर दोस्तों की महफ़िल में,
तरकीब बताई जाती है ;
प्यार जताने की हमको ;
हर युक्ति सिखाई जाती है ।।
यूँ पहला अध्याय प्यार का पढकर ,
इजहार प्यार का करते हैं ;
और उनके ना कहने के बहाने ;
जब हम कुछ ऐसे सुनते हैं ।।
कभी सोचा ही नहीं इस बारे में ,
बस अच्छा दोस्त समझते हैं ;
कमबख्त दिल का दर्द लिए;
हम मदिरालय चल पढ़ते हैं ।।
फिर कभी कभी आंखें नम सी,
हो जाती हैं हाल सुनाने में;
और कभी कभी दिल-ए-दर्द की;
बातें होती मयखाने में ।।
कमबख्त ये दिल तो पागल है ,
जो बस उनपर ही मरता है;
वो लाख मना कर दें मुझको ;
ये प्यार उन्हीं से करता है ।।
यूँ दिल में प्यार का दर्द लिए,
इक दिन कॉलेज से चल पढ़ते हैं;
नयी नौकरी नयी छोकरी ;
ढूँढने की सपथ लेते हैं ।।
हाय जवानी बीत गयी ,
अब दाल कहीं नहीं गलती है ;
तब मम्मी - पापा की तरफ;
आशा की नजरें उठती हैं ।।
कैसी लड़की चाहिए तुझको ,
जब मम्मी ये पुछा करती है;
तब अपने भी अरमानों की,
एक लम्बी लिस्ट निकलती है ।।
घने रेशमी बालों वाली ,
खूबसूरत और प्यारी हो ;
नीली नीली आँखों वाली ;
लगती राजकुमारी हो ।।
लम्बी ना मोटी छोटी,
जीरो फिगर वाली हो ;
चंद्रमुखी से भी खूबसूरत;
माँ..! मेरी घरवाली हो ।।
कैसे कैसे आरमान लिए ,
खाव्बों में खोये रहते हैं ;
वो जान -ए -हया कैसी होगी;
दिन रात सोचते रहते हैं ।।
इकदिन छोटी मोटी सी,
एक बीवी भी मिल जाती है ;
यूँ सारे अरमानों की;
अर्थी भी उठ जाती है ।।
अब तो बस बीवी बच्चों की,
फरमाईश पूरी करता हूँ ;
क्यों शादी कर ली मैंने;
अक्सर ये सोचा करता हूँ ।।
सुबह सुबह हनी कहकर,
पुचकार के मुझे उठाती है;
सड़ी हुयी चाय पिलाकर ;
नाश्ता तैयार करवाती है ।।
अब कोल्हू के बैल की तरह ,
दिन भर काम करवाती है ;
गलती हो या ना हो मेरी;
डायन.. मुझपर ही गुर्राती है ।।
यूँ पंचनामा हुआ प्यार का ,
अब ना हसरत कोई बांकी है ;
ना तेरी ना मेरी प्यारे ;
हम सबकी यही कहानी है ।।
गौरव पन्त
27 जनवरी 2013