Saturday, March 30, 2013

वर्षा ऋतु और दुल्हन

यह कविता "वर्षा ऋतु" और "विवाह -वेदी पर बैठी दुल्हन" के बीच तुलनात्मक अध्ययन का एक छोटा सा प्रयास है । इसी तुलनात्मक अध्ययन को ध्यान में रखकर पढियेगा , तो शायद पसंद आये ...।

घन घनघोर, तिमिर,अरुण घन बीच एसे छिप रहा,
मनु मकु बिलोकत अंच से,लजियात चंद्र छिप रहा ॥
चंचल चपल सुहावती, कलि गगन की ओढ़नी में ,
रजत टीक सुहावती, केश रेशमी शीश में ॥

घन वस्त्र ओढ़े गगन का , अंग ऐसे दिख रहा ,
नील नयन अंजन लिए, मृग नयनी का जो दिख रहा ।
वन उपवनों में चंचल मयूर, न्रत्य करने हैं लगे,
कन्त घर जाने के, उल्लास से मन डोलने लगे ॥

गजराज से भिड़ते घनों से, धरा डोलने लगी,
आज बेसुध दुल्हनी को,शोक से भरने लगी।
गजराज निज लहू से,धरा को भिगोने लगे,
रूपसी नारी नयन, अंश्रु से भरने लगे॥

मिलेंगे हाथ पर ,छूटे रहेंगे ये सदा,
बरसात जैसे जलद बनकर, मिलेंगे हम सदा।
माफ़ करना बदली कहे, रेत भू को देख कर,
माफ़ कर देना मुझे,तुम अपनी प्यारी सोचकर॥

गौरव पन्त
३१ -मार्च-२०१३

Thursday, March 28, 2013

शायरी ....!

ये पहली दफा है जब अपनी शायरियों को संजो के रखने का प्रयास कर रहा हूँ । उम्मीद करता हूँ कि आप पसंद करेंगे..!

१ - दिल के बदले, दिल-ए-दर्द लेने की आदत सी हो गयी ,
     जब से मिले हैं तुमसे , हमे मुहब्बत सी हो गयी ॥ 
     ये कह रहा है मेरे , जवां दिल का बाँकपन ,
     तेरे आने से जिंदगी मेरी , जन्नत सी हो गयी..


२- तकदीर को मेरा , क्यों साथ ना गंवारा ,
    छीना वही साथी , जो हमको लगा प्यारा ॥
 
    जब फूल थे,गुलशन थे,बहारें थी, साथ तुम थे,
    होंठों पे जब हंसी थी,खुशियाँ थी, जान तुम थे।
    आंखें बिछाये राहें, और अश्क कह रहे हैं,
    क्यों सोच बैठे उनको, हर राह का सहारा ॥

    ऐ यार मुहब्बत में,हमने ये खता की है ,
    खुद दर्द सह लिए और खुशियाँ ही तुम्हें दी हैं।
    बेवफाई के बदले भी, तुझको ये दुआ दी है,
    इन्साफ ना करना खुदा,महबूब वो हमारा ॥
 
    मैं हूँ जमीं, गगन तू,हूँ सहरा मैं चमन तू,
    मैं हूँ चमकता तारा,सूरज की है किरण तू।
   मिल सकते ना अब उनको,खुश रखना ऐ खुदा तू,
   हस्ती है मेरी क्या, हूँ मैं गर्दिश में  गिरा तारा ॥
   

३- मांगी जो  खुदा   से,   वो  दुआ  हो  तुम,
    जिंदगी गर सफर है, तो तो रहनुमा हो तुम,
    अश्क़ तेरा मुझमे , इसकदर  बस  चुका ,
   जीने की अदा ही नहीं , आदत भी हो तुम !!

4- तेरी आँखों से पढ़ते हैं हम, आयतें  मुहब्बत के ,
पनाहों में तेरी होते हैं , चर्चे मुहब्बत के,
याउम -ए -पैदाईश, मुबारक हो तुम्हें हमदम,
अजानों में भी सुनते हैं हम, सजदे मुहब्बत के!!




गौरव पन्त
२८-मार्च-२०१३ -- 

Wednesday, March 27, 2013

हम हैं कॉलेज स्टूडेंट....

वैसे तो हम सभी के कॉलेज के दिन ऐसे ही रहे होंगे । पर ये कविता कुमाऊँ विश्वविद्यालय के दोस्तों को समर्पित है ..! कुछ ऐसे थे वो बीते दिन ...


हम हैं कॉलेज स्टूडेंट ,
नौ बजे करते पेप्सोडेंट !
हम हैं कॉलेज स्टूडेंट ॥
                           कॉलेज अपना पिकनिक स्पॉट,
                           कोई यहाँ कूल तो कोई यहाँ हॉट ।
                           बस मौज-मस्ती,पढाई यहाँ कम,
                           पपेरों का यारो अभी किसको टेंशन ।
                           सितम्बर से दिसम्बर, महीने हैं चार,
                           दोस्तों के साथ इसमें करना है धमाल ।
                           सुबह  आराम से उठना है ,
                           रात को देर से सोना है ,
                           "Early to bed,Early to raise",
                           कम्बखत..! बहुत घिनौना है ।
                           ३१st दिसम्बर हो या बर्थडे पार्टी ,
                           "Valintain day" हो या "Cocktail" पार्टी,
                           "Attendance lecture theatre" में कम ,here 100%,
                           "Because we are college Student" ||

सिगरेट के छल्ले,कमीजवा का कालर,
मुखाडिया में लिपस्टिक,क्रीमवा या पौडर ।
कॉलेज कैंपस या फिल्म शूटिंग कैंप ,
"Every student is a model at ramp"
कागज के फर्रे और "goggles" हर कहीं ,
"Cosmetics" के सिवाय, पर्श में कुछ नहीं ।
"Lecture Theatre", तो हम जाते ही नहीं ,
"Film Theatre" की शोभा, हमारे बिन नहीं ।
सलमान,शाहरुख़,करीना आदर्श हैं हमारे,
ह्रितिक और ऐश किसको नहीं प्यारे ।
"Joan" और "Bipasha" से हम भी तो कम नहीं,
पढाई हो या ना हो फैशन हर कहीं।
हर कहीं जीन्स, ना सलवार ना पैंट,
"Because we are college Student" ||
                           
                            पढाई की नहीं, "examination scheme" आने लगी हैं,
                            तभी तो सभी के चेहरों की हवाइयाँ उढ़ी हैं ,
                            सिलेबस, सैंपल पेपर्स सब खोजने लगे हैं,
                            पास होने की युक्तियाँ सब सोचने लगे हैं ।
                            ना पार्टी ,ना महफ़िल, ना शापिंग ना वाकिंग ,
                            ना गर्लफ्रेंड से , देर रात तक टॉकिंग ।
                            पढने की खातिर "dieting" होने लगी है ,
                            जिसमे घूमते-घुमाते थे,"bike" जंग खाने लगी है।
                            "Rock music" के बजाय,भजन सुना करते हैं,
                            टीका-चन्दन लगाकर पढने बैठते हैं ।
                            "Don't worry,this routine will not be long,
                             But short,Because we know,"
                             पास होने के लिए , "January-February" बहुत इम्पोर्टेन्ट,
                             "Because we are college Student" ।।

गौरव पन्त
२७-मार्च-२०१३                    

Saturday, March 23, 2013

परिचय ...!

जब तक घर की दहलीज में था ,
किसी ने मेरा परिचय न पूछा था ,
महफ़िल-ए-दुनिया में जो इक बार आया मैं,
तो लॊग पूछते हैं , बता क्या है तेरा परिचय !!

मैं व्याकुल हूँ , कि मेरा जवाब क्या हो ,
क्योंकि परिचय तो मेरा बस बदलता ही रहा है ..!
विद्यालय में पहले तो , नाम मेरा परिचय था ,
छात्रवृत्ति मिलने पर , जाति परिचय बन गयी॥
धार्मिक कर्मकांडों में , धर्म मेरा परिचय बना ,
तो नौकरी  खोजने में ,आरक्षण परिचय बन गया॥
छेत्रवाद में , प्रदेश परिचय बना मेरा ,
सामाजिक व्यहार में , भाषा परिचय बन गयी ॥
विवाह के व्यापार में , डिग्री परिचय थी मेरी,
तो विवाह-वेदी में,वर्ण -कुल -गोत्र परिचय बने ॥
रंगीन महफिल-ए-दुनिया में ,अमीरी तो गरीबी परिचय थे,
विदेशों में नागरिकता परिचय बन गयी ॥
वक्त के साथ-साथ ,वही हाड-मांस का तन ,
भिन्न-भिन्न जगहों में , परिचय बदलता गया ॥

बहुत से हैं मेरे परिचय ,किसे क्या बताऊँ ,
बेहतर ..! आज मुझसे कोई मेरा परिचय ना पूछे ॥
क्योंकि
मैं इन्सान हूँ, और इन्सानियत है मेरा परिचय ... !!

गौरव पन्त
२३-मार्च-२०१३ 

Wednesday, March 6, 2013

निर्भया.....!


इक दिवा स्वप्न से ,देश..! झकझोर के उठा था ,
हैवानियत की जब, इन्तहां हो चुकी थी !
माँ के समान पूजित, जब देश के दिल में ,
इक निर्भया की अस्मत, राख हो चुकी थी ॥
हर गली-कूंचे ने, जब हुंकार भरी थी ,
"परिवर्तन चाहिए ", यह तान भरी थी ॥
अब सुशुप्त है मुल्क,खामोश हर दिशा है ,
तो क्या हकीकत में - हर दामिनी "निर्भया" है ?
क्या कोख में  माँ की ,दहलीज में पिता की,
ससुराल में पति संग ,क्या दामिनी "निर्भया" है ?
क्या  घर-आँगन में ,या आम सड़कों पर ,
सुनसान राहों में , या भीड़ में लोगों की ,
क्या परिवर्तन हो चुका, क्या दामिनी "निर्भया" है ?

कानून बन गया तो क्या...?, बिक जायेगा वो भी,
नोटों के बिस्तर में,सो जायेगा जज भी ,
जहाँ बेचकर माँ का आँचल, बनाते हों नेता टोपी,
वहां इन्साफ की प्यारे,है बात ही खोखली॥
अब "परिवर्तन" हो,तो "परिवर्तन" जन्म से हो,
ना लड़के की चाहत हो,ना कन्या पराया धन हो ,
ना हों पीले हाथ,गर दहेज़ की मांग हो,
ना परिवरिश में उसकी,कभी कोई लिंग भेद हो,
कन्यादान कर पिता,जब बॊझ उतरा ये ना सोचे ,
ससुराल के उत्पीडन पर,दामिनी.. किश्मत को ना कोशे,
जब  "दामिनी" को भोग्या दृष्टि से ना देखा जाये,
तब होगा परिवर्तन, जब हर दामिनी "निर्भया" हो ॥  


गौरव पन्त
६ मार्च २०१३