इक दिवा स्वप्न से ,देश..! झकझोर के उठा था ,
हैवानियत की जब, इन्तहां हो चुकी थी !
माँ के समान पूजित, जब देश के दिल में ,
इक निर्भया की अस्मत, राख हो चुकी थी ॥
हर गली-कूंचे ने, जब हुंकार भरी थी ,
"परिवर्तन चाहिए ", यह तान भरी थी ॥
अब सुशुप्त है मुल्क,खामोश हर दिशा है ,
तो क्या हकीकत में - हर दामिनी "निर्भया" है ?
क्या कोख में माँ की ,दहलीज में पिता की,
ससुराल में पति संग ,क्या दामिनी "निर्भया" है ?
क्या घर-आँगन में ,या आम सड़कों पर ,
सुनसान राहों में , या भीड़ में लोगों की ,
क्या परिवर्तन हो चुका, क्या दामिनी "निर्भया" है ?
कानून बन गया तो क्या...?, बिक जायेगा वो भी,
नोटों के बिस्तर में,सो जायेगा जज भी ,
जहाँ बेचकर माँ का आँचल, बनाते हों नेता टोपी,
वहां इन्साफ की प्यारे,है बात ही खोखली॥
अब "परिवर्तन" हो,तो "परिवर्तन" जन्म से हो,
ना लड़के की चाहत हो,ना कन्या पराया धन हो ,
ना हों पीले हाथ,गर दहेज़ की मांग हो,
ना परिवरिश में उसकी,कभी कोई लिंग भेद हो,
कन्यादान कर पिता,जब बॊझ उतरा ये ना सोचे ,
ससुराल के उत्पीडन पर,दामिनी.. किश्मत को ना कोशे,
जब "दामिनी" को भोग्या दृष्टि से ना देखा जाये,
तब होगा परिवर्तन, जब हर दामिनी "निर्भया" हो ॥
गौरव पन्त
६ मार्च २०१३
Nice One Pantji...
ReplyDeleteSo intense!!! But this could have happened anywhere. Why blame Delhi as a whole?
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