अहले वतन के लोगो, सुन लो मेरी जुबां को,
दिल के गुबार को या अश्कों की दास्ताँ को।।
आवाज है ये उनकी, जो शहीद हो गये हैं,
इक हंसी चमन को देने, जो कफ़न लिए चले हैं;
यह इक रजा है उनकी, सन्देश है वतन को,
हिमगिरि सदा मुकुट हो,सागर ही धोये पग को ।।१।।
हिन्दू नहीं ना मुस्लिम,ना सिक्ख ना ईसाई,
ममता के आँचल की, क्यों कीमतें लगाई ;
आंसू संजोये आंखें, निहारें सदा तुम्हीं को ,
आपस में प्यार बांटो,बांटो नहीं वतन को ।।२।।
हाथों में दे दो हाथ, क़दमों से कदम मिला लो,
एकता की ज्योति थामो,कुछ पुण्य धन कमाओ;
इससे पहले की हस्ती हमारी, राह-ए -ख़ाक हो,
हर दिल में जगा दो यारो, देशभक्ति की अलख को ।।३।।
अहले वतन के लोगो, सुन लो मेरी जुबां को,
दिल के गुबार को या अश्कों की दास्ताँ को।।
गौरव पंत
दिल के गुबार को या अश्कों की दास्ताँ को।।
आवाज है ये उनकी, जो शहीद हो गये हैं,
इक हंसी चमन को देने, जो कफ़न लिए चले हैं;
यह इक रजा है उनकी, सन्देश है वतन को,
हिमगिरि सदा मुकुट हो,सागर ही धोये पग को ।।१।।
हिन्दू नहीं ना मुस्लिम,ना सिक्ख ना ईसाई,
ममता के आँचल की, क्यों कीमतें लगाई ;
आंसू संजोये आंखें, निहारें सदा तुम्हीं को ,
आपस में प्यार बांटो,बांटो नहीं वतन को ।।२।।
हाथों में दे दो हाथ, क़दमों से कदम मिला लो,
एकता की ज्योति थामो,कुछ पुण्य धन कमाओ;
इससे पहले की हस्ती हमारी, राह-ए -ख़ाक हो,
हर दिल में जगा दो यारो, देशभक्ति की अलख को ।।३।।
अहले वतन के लोगो, सुन लो मेरी जुबां को,
दिल के गुबार को या अश्कों की दास्ताँ को।।
गौरव पंत
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