मेरी यह कविता, कविता नहीं, प्रेरणा के दो बोल हैं,एक अर्ज है......!
उठ जाग मुसाफिर राह तके,
इस राह में सिर को कटा जाना।
कतरा जो लहू का मांगे वतन,
खुद अपनी हस्ती मिटा जाना।।१।।
गर फूल मिलें तुझे राहों में,
उसकी खुश्बू बिखरा जाना।
गर शूल मिलें तुझे राहों में,
उनपर खुद को तू लिटा जाना।।२।।
जो मौत द्वार दस्तक देती,
कहीं लहू ना पानी बन जाये।
सिंह सा दहाड़ तू बार-बार,
फिर दया ना गुलामी बन पाए।।३।।
पूजा की थाल में फूल नहीं,
तू सिर की भेंट चदा जाना।
तू मोम नहीं पत्थर बनकर,
अंगार पे चलना सिखा जाना।।४।।
गर रंग भेद हो धर्म भेद,
ईश्वर एक बात बता जाना।
अज्ञान अँधेरा बढ़ जाये,
ज्ञान की ज्योति जगा जाना।।५।।
खून की नदियाँ बहती हों,
प्रेम उमंग जगा जाना।
पथभ्रष्ट मानव होने लगे,
तो सच्चा ज्ञान करा जाना।।६।।
मजधार में मानवता पहुंचे,
बेडा पार लगा जाना।
जब कर्म भाग्य के भेद बढे,
गीता का ज्ञान करा जाना।।७।।
आज पुकारूं तुझको में,
मेरी अर्ज ना ठुकरा जाना।
मुझको भरोसा तुझपर है,
दिल पर पत्थर न रख जाना।।८।।
गौरव पन्त
२४ अप्रैल,२०११
आज पुकारूं तुझको में,
मेरी अर्ज ना ठुकरा जाना।
मुझको भरोसा तुझपर है,
दिल पर पत्थर न रख जाना।।८।।
गौरव पन्त
२४ अप्रैल,२०११
।।
hey nice one gaurav...never knew u are a poet too:)
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